वह भीड़ में सिर्फ एक और चेहरा मालूम पड़ते हैं लेकिन जब अपनी पृष्ठभूमि के बारे में बात करते हैं, तो पता चलता है कि इस शख्स के ऊपर वक्त और हालात की कितनी जबरदस्त मार पड़ी है। मशहूर टीवी धारावाहिक ‘बालिका वधू’ (Balika Vadhu) के निर्देशकों में से एक रामवृक्ष गौड़ कोरोना महामारी के कारण आर्थिक तंगी से जूझते हुए आजमगढ़ जिले में सब्जी बेच कर पेट पाल रहे हैं।
रामवृक्ष गौड़ ने मायानगरी मुंबई के अपने सफर के बारे में बात करते हुए कहा, ‘मैं अपने दोस्त और लेखक शाहनवाज खान की मदद से 2002 में मुंबई गया था। मैंने लाइट डिपार्टमेंट में और फिर टीवी धारावाहिकों के प्रोडक्शन डिपार्टमेंट में काम किया। मैं पहले कई धारावाहिकों में एक सहायक निर्देशक बन गया। फिर, ‘बालिका वधू’ के लिए एपिसोड निर्देशक और यूनिट निर्देशक के रूप में काम किया।’
कई बड़े धारावाहिक का कर चुके डायरेक्शन
पहले कई सीरियल के प्रोडक्शन में बतौर सहायक निर्देशक काम किये फिर एपिसोड डायरेक्टर, यूनिट डायरेक्टर का काम किया। इसके बाद इन्होंने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा। रामवृक्ष बताते हैं कि बालिका वधु, में बतौर यूनिट डायरेक्टर इन्होंने काम किया। इसके बाद इस प्यार को क्या नाम दूं, कुछ तो लोग कहेंगे, हमार सौतन हमार सहेली, झटपट चटपट, सलाम जिंदगी, हमारी देवरानी, थोड़ी खुशी थोड़ा गम, पूरब पश्चिम, जूनियर जी जैसे धारावाहिकों में भी इन्हें काम करने का अवसर मिला। फिल्म इंडस्ट्री में इनके काम की सराहना हुई तो फिल्मों में भी अवसर मिला।
सुनील शेट्टी और रणदीप हुड्डा तक को अपने इशारों पर नचाया
रामवृक्ष ने यशपाल शर्मा, मिलिंद गुणाजी, राजपाल यादव, रणदीप हुडा, सुनील शेट्टी की फिल्मों के निर्देशकों के साथ सहायक निर्देशन के तौर पर काम किया। आने वाले दिनों में एक भोजपुरी व एक हिन्दी फिल्म का काम रामवृक्ष के पास है, वे कहते हैं कि अब इसी पर वह फोकस कर रहे हैं लेकिन कोरोना संक्रमण के चलते हुए लॉकडाउन की वजह से यह प्रोजेक्ट अटके हुए है। कारण कि प्रोड्यूसर आर्थिक संकट के कारण दोनों फिल्मों को कुछ दिन बाद शुरू करने का फैसला किये है।
लॉकडाउन के चलते रुका फिल्मों का प्रोजेक्ट
रामवृक्ष बताते हैं कि मुंबई में उनका अपना मकान है, लेकिन दो साल पहले बीमारी के कारण उनका परिवार घर आ गया था। कुछ दिन पूर्व एक फिल्म की रेकी के लिए वे आजमगढ़ आए। वे काम कर ही रहे थे कि कोरोना संक्रमण के चलते लॉकडाउन लग गया। इसके बाद उनकी वापसी संभव नहीं हो पायी। काम बंद हुआ तो आर्थिक संकट खड़ा हो गया। प्रोड्यूसर से बात की तो उन्होंने बताया कि प्रोजेक्ट पर एक से डेढ़ साल बाद ही काम शुरू हो पाएगा।
आर्थिक तंगी के कारण सब्जी बेचने को मजबूर
फिर उन्होंने अपने पिता के कारोबार को अपनाने का फैसला किया और आजमगढ़ शहर के हरबंशपुर में डीएम आवास के आसपास सड़क के किनारे ठेले पर सब्जी बेचने लगे। इससे परिवार आसानी से चल जा रहा है। चुंकि बचपन में भी वे अपने पिता के साथ सब्जी के कारोबार में मदद करते थे। इसलिए यह काम उन्हें सबसे बेहतर लगा, वे अपने काम से संतुष्ट हैं।